मै प्रमोद ग्राम टाकवलवाड़ी, पोस्ट-ऑफिस धूनाघाट, तहसील पाटी, जिला चंपावत, उत्तराखंड से बोल रहा हूँ। हमारे गाँव मे पहले पानी और कृषि की समस्या है। जंगली जानवर भी फसल को नष्ट कर देते है। इस इलाके मे खेतों में सिचाई करने के लिए पानी के टैंकर की व्यवस्था होनी चाहिए। वर्तमान मे राबी और खरीफ की फसल लगाते है, उससे औसतन कुछ ही महीने के खाने के लिए पैदा हो पाता है। कभी-कभी तो जितने का बीज डालते है उतना भी नही हो पाता है। फसल की बीज सरकारी दुकान या प्राईवेट दुकान से खरीदते है। हमारे ग्राम सभा मे अस्पताल, सड़क जैसी सुविधाएं और बेरोजगारी की समस्या होने की वजह से पलायन हो रहा है जिसका मुख्य कारण गरीबी है।
देवकीनन्दन भट्ट, ग्राम सभा टाकवल्वाडी, विकास खंड धूनाघाट, तहसील पाटी, जिला चम्पावत (उत्तराखंड) के निवासी हैं. अपने गाँव के बारे मे बता रहे है कि पूर्वजों से लेकर हमारी पीढ़ी भी कृषि करते आ रहे है लेकिन अब समय पर वर्षा नही होने की वजह से यहाँ के लोग कृषि नही करते हैI दूसरा, यहाँ के लोग जानवर बहुत कम पालते है। पहले गाँव में 150 परिवार रहते थे परन्तु अब कुछ लोग पलायन कर गए है और अब मात्र 40 परिवार बचे है I गांव में 18 से 20 साल के ऊपर का कोई युवा नही मिलेगा क्योकि सब पलायन कर गए है। आजीविका का यहाँ कोई साधन नही हैI हम लोग जो फसल लगाते है, उसको जंगली जानवर नष्ट कर देते हैI खेतों मे गेहूँ, जौ और सरसों की फसल लगाते है। खरीफ की फसल में मिर्ची, हल्दी, पुलम, मडुआ, सोयाबीन आदि लगाते है जिसकी पहले करीब 60% पैदावार होती थी लेकिन अब जानवरों के आतंक की वजह से 5 से 10% ही फसल की उपज हो पाती है। हम लोंगो ने अपने जानवर भी बेच दिए क्योकि उनको खिलाने के लिए चारा (घास) नही हैI यहाँ पर जंगली जानवरों में बंदर (लाल और काला), सुअर, बराह आदि है जो की फसल के उगते ही उसको खा लेते हैI खेत में जानवर के आतंक को रोकने के लिए पूरे ग्राम में तार-बाड़ किया जाना चाहिए। सुरक्षा के लिए एक चौकीदार को नियुक्त किया जाना चाहिए। ग्राम सभा सकदेना और टाक बल्बाड़ी में पानी का स्रोत है। वहां से सरकारी स्कीम से पानी का स्त्रोत उपलब्ध कराया जाएI अगर ये उपाए किये गए फसल की अच्छी उपज होगी, वर्ना पलायन को रोकने का कोई और उपाय नही हैI
मेरा नाम देवीदत्त उपाध्याय है, मैं ग्राम-प्रधान, जिप्ती, तहसील-धारचूला, जिला-पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) से हूँ। ग्राम पंचायत में आपदा आने से जन-धन की हानि हो सकती है। ग्राम प्रधान ने कई बार आपदा और डूब क्षेत्र से प्रभावित लोंगों के बारें में शासन को पत्राचार भेजा लेकिन आज तक प्रशासन द्वारा कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई। इसका मतलब प्रशासन कुछ लिपा-पोथी कर रहा है। इससे जनता को भ्रम हो गया है। प्रशासन से हम गुजारिश करते है कि आपदा से प्रभावित 76 परिवारों को मुआवज़ा दिलाया जाए। जिससे वो अपने जान-माल कि सुरक्षा अपने आप स्वयं कर सके।
जिप्ती के ग्राम प्रधान देवीदत्त उपाध्याय (तहसील-धारचूला, जिला-पिथौरागढ़) अपने क्षेत्र की समस्याओं को सांझा कर रहे हैं। इनके गाँव में कुल 76 परिवार हैं। 2006 में गाँव के ऊपरी भाग से भूस्खलन हुआ था। इनकी यही मांग है कि उन परिवारों को क्षतिग्रस्त स्थान से विस्थापन किया जाय। सरकार ने अपने भू-वैज्ञानिकों को सर्वे करने के लिए भेजा था। उन्होंने जिप्ती के विस्थापन को आवश्यक बताया था लेकिन अभी तक विस्थापन नही हआ हैं। हमने 2013 की आपदा में भी हमने जो मांग रखी थी लेकिन सरकार ने अभी तक हमारी कोई-भी मांग पूरी नहीं की है। स्कूल में जो भी टीचर जाते है वो बच्चों को सही से नहीं पढ़ाते है जिससे पलायन और ज्यादा बढ़ गया हैं। हमारा गाँव भी पलायन की कगार पर है। कई जगह पलायन की मांग करने के बाद – सरकार द्वारा साइट ट्रीटमेंट के लिए प्रोग्राम चलाया गया लेकिन यहाँ पर ट्रीटमेंट का कोई-भी पैकेज नहीं आया और हमारे विस्थापन को लेकर अभी तक कोई कार्यवाही नही हुई
मेरा नाम माया देवी ग्राम -थपलियालखेड़ा, ग्रामसभा-सैलानिगोथ, तहसील – पूर्णागिरी, जिला पंचायत-चम्पावत से बोल रही हूँ। ग्राम पंचायत सैलानिगोथ से जुड़ा हुआ एक तोक है। मैं अपने गाँव के समस्याओं के बारे में बताना चाहती हूँ। मेरे गाँव में विजली,रोड और स्वास्थ्य जैसे कुछ भी सुबिधाऐ नही हैं। यहाँ से मरीजों को इलाज कराने और समान लाने और ले जाने में बहुत-सी समस्याएँ होती है। हमारे क्षेत्र के विधायक जी ने बिजली, स्वास्थ्य और पानी दिलाने का आश्वासन दिये थे। अब 2018 भी आने वाला है लेकिन अभी तक कोई सुबिधायें नही हुई हैं।
मेरा नाम मलिक सिंह बिष्ट है। मैं ग्राम सेरागढ़ा, P.O नेचुना बुशैल, तहसील – गंगोलीहाट (जिला पिथौरागढ़) से बोल रहा हूँ। सरयू घाटी के इस क्षेत्र में सैकड़ो वर्ष से हमारे पूर्वजों ने निवास किया और अब हम यहां निवास कर रहे हैं। यहाँ की लगभग आबादी 300 है। यहां का मुख्य व्यवसाय कृषि है जिससे समुदाय अपना जीवन यापन कर रहे हैं। महाकाली परियोजना के डूब क्षेत्र में लगभग 10 से 15 गांव आ रहे हैं जिसके चलते पर्यावरण, आर्थिक समस्यायों से जुझना पड़ेगा। अभी तक सरकार कोई योजना गांव में नहीं पहुंचा पा रही है। अभी तक कोई-भी जनप्रतिनिधि नहीं आये हैं। अभी तक कोई सर्वेक्षण भी नहीं हुई है। कितनी भूमि डूब क्षेत्र में आ रही है और कितनी आबादी डूब रही है ? कितना क्षेत्र भविष्य में खतरे की जद में आयेगा ? इस के बारे में ऊपरी-ऊपरी बातें हो रहीं हैं, कोई सर्वेक्षण हमने नहीं देखा। बिना किसी जानकारी के लोगों में यह भय हो रहा है कि किसका खेत डूबेगा – क्या ज़्यादा क्षेत्र डूबेगा, आप लोगों को विस्थापित होना पडेगा ? हम लोगों को कहाँ विस्थापित किया जाएगा ? कहाँ भटकेंगे ? कहाँ जायेंगे ? पंचेश्वर बांध बनने से हमें कोई समस्या नहीं पर इस संबंध में पहले जनता से राय ली जाय, उसके बाद उनकी सभी समस्याओ का निराकरण किया जाय। इसके बाद पंचेश्वर बांध परियोजना को चालू किया जाए।
मेरा नाम रोशन सिंह है। मैं ग्राम रौतेला, पोस्ट-चौरपाल, तहसील-गंगोलीहाट, जिला-पिथौरागढ़ से हूँ। रोशन जी के साथ उनके साथी गोविन्द सिंह, अमित सिंह, रवेन्द्र सिंह, विजय सिंह हैं। इन सबका कहना है कि इन्टर से लेकर कालेज तक की पढाई करने 5 किलोमीटर दूर चौरपाल पहाड़ी तक पैदल चलकर जाना पड़ता है। गांव में पेयजल और शिक्षा की बहुत समस्या है। अस्पताल गाँव से 12-13 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। यह सब इन सभी मूलभूत सुविधाओं की सेवा आसानी से ले पाएं, उसका नियोजन चाहते हैं और निवेदन करते हैं।
मेरा नाम चन्द्र सिंह मेहरा है। मेरा गांव बुसैल जिला पिथौरागढ़ की गंगोलीहाट तहसील में स्थित है। चंद्र सिंह जी दो प्रमुख समस्याओं पर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं; हमारे गाँव में पैदल आना पड़ता है। पव्वाधार-सेराघाट-बुसैल नाम से सड़क मंजूर है परन्तु इसमें बजट न होने की बात कह करके नेता अपना पल्ला झाड़ लेते हैं इसलिए यह चाहते हैं कि इसमें सरकार की ओर से पैसा दिया जाए ताकि इस सड़क का निर्माण हो सके। ग्राम सभा बुसैल में 1985 से एक आंगनबाड़ी केंद्र है जिसका भवन अभी तक नही बन पाया है। उसका भवन बनना चाहिए ताकि छोटे बच्चों के बैठने की सुबिधा हो सके।
मेरा नाम प्रेम सिंह बिष्ट है। मैं गंगोलीहाट तहसील के ग्राम-रैतोला जो जिला-पिथौरागढ़ का रहने वाला हूँ। 70 साल से रैतोला का विकास नहीं हुआ है। मैं अपने आप पर निर्भर हूँ और भावी पीढ़ी के लिए चिंतित हूँ कि वे क्या करेंगे। हमारी भूमि क्षतिग्रस्त है। डाक्टर नज़दीक उपलब्ध न रहने से बहुत समस्या है और शिक्षा व्यवस्था के नाम पर गाँव में एक प्राथमिक स्कूल है। हमारे यहाँ कोई अधिकारी नही आता है। पर अधिकारीयों ने प्रस्ताव दिया कि आप क्या चाहते है ? अगर बांध बनता है तो आप विरोध करते हो या नहीं।
श्रीवास कोल ग्राम-पंचायत – रैतोला, पोस्ट ऑफिस – चौरपाल, तहसील – गंगोलीहाट, जिला-पिथौरागढ़ उत्तराखण्ड से बोल रहे हैं। वह बता रहे हैं कि उनके गांव की जनसँख्या 500 के करीब है और यह गांव सरयू घाटी में, गंगोलीहाट कस्बे से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ग्राम पंचायत में एक प्राथमिक स्कूल है। बीमार व्यक्ति को पहले डोली में बैठाकर फिर सड़क से अस्पताल पहुँचाना पड़ता है जो 20-22 किलोमीटर दूर गंगोलीहाट में है। यहाँ रोड और अस्पताल की समस्या है। यह घाटी काफी उपजाऊ है – यहाँ गेहूँ, धान, मड़वा, बाजरा आदि फसलों की खेती होती है। फलों में आम, अमरुद, कटहल और केला मुख्य हैं और सब्जियों में आलू, गोभी, बैगन और भिंडी थोड़ा-थोड़ा सब खेतों में पैदा होती है। पंचेश्वर बाँध बनने से यहाँ के लोंगों को बहुत समस्या होगी। इस परियोजना से विस्थापित लोगों को कहाँ बसाया जायेगा, इसका कुछ पता नहीं – इसके बारे में लोंगो को कोई-भी जानकारी नही है।
सरयू घाटी के पास ग्रामसभा जिंगल से भगवान सिंह बता रहे हैं कि इनका गांव पंचेश्वर बांध से प्रभावित हो रहा है। हम यहाँ बाप दादाओं के ज़माने रहे हैं। हमारे गांव की 500 से ज्यादा आबादी है। यहां मुख्य समस्या सड़क की है जिससे बीमार व्यक्ति को डोली में बैठाकर पैदल 8 से 15 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। हम ये चाहते है कि – यहां से हमें विस्थापित न किया जाय। अपनी मेहनत से खेती से सब कुछ उत्पादन कर अपना भरण – पोषण करते हैं। पंचेश्वर बांध के डूब क्षेत्र में आने से सरकार विस्थापित कर हमें मुसीबत में न बसाये। इसलिए हम पंचेश्वर बांध का पूरा विरोध करते हैं। ये बांध नहीं चाहिए।
कैलाश चंद जोशी ग्राम -कुनगड़ा, ग्रामपंचायत-धुरा, तहसील-भनौली, जिला-अल्मोड़ा की सरयू घाटी से बता रहे हैं कि उनकी 15 नाली जमीन है, 10 कमरे का मकान है, सिंचाई का टैंक है, लैट्रिन बाथरूम है; 7 आम के पेड़ हैं, खेतों में धान की फसल है। गाँव में स्कूल, बिजली और पानी की सुविधा भी है। उनका कहना है कि इतनी सुविधाओं को क्या नई जगह पर बनाया जा सकेगा, क्या बाँध से विस्थापन यह सब देगा या नहीं। अगर नहीं तो बांध भी नहीं बनना चाहिए।
मै बच्ची वर्मा ग्राम-पव्वाधार, तहसील-गंगोलीहाट, जिला-पिथौरागढ़ से हूँ। हमारे पूर्वज यहाँ के मूल निवासी हैं और हमारे बाप दादा यहाँ रहते आए हैं। पंचेश्वर बाँध डूब क्षेत्र के बारे में कोई जानकारी देने आया ही नहीं, बहुत सा क्षेत्र छूटा हुआ है, नाम नहीं हैं। हमें इसके बारे में कोई अता पता नहीं है, कोई जानकारियां नहीं दी गई हैं। कोई अधिकारी हमारे गाँव में सर्वे करने के लिए कोई आधिकारी नहीं आए। सर्वे लिस्ट में बहुत क्षेत्रों का नाम नहीं है। हमारी जानकारी में सर्वे करने के लिए कोई अधिकारी नहीं आया। हमारे यहाँ समस्यायों की सुनवाई करने के लिए कोई आधिकारी नहीं आए, हम क्या करें ? हम आन्दोलन के लिए मजबूर हो जायेंगे और इन्हीं बातों से विरोध करते हैं।
Women Speak at the Public Hearing, Pitthoragarh
मैं नंदा बल्लभ ग्राम कुनगड़ा, तहसील-भनौली ,जिला-अल्मोड़ा उत्तराखंड से बोल रहा हूँ। हमारे गाँव की जनसँख्या 1000 के करीब है। हमारी इस घाटी में खेती बहुत अच्छी होती है। यहाँ पर तालाब, नदी-नाले, नहर और पानी आदि की सुविधा बहुत अच्छी है। सिंचित खेत, बाग़ बगीचे, फलदार वृक्ष, आदि यहां खूब है। यहाँ भू-स्खलन बहुत कम होता है। हमारा गाँव देखने में हल्द्वानी जैसा है। यहाँ पिछले साल शारदा घाटी में आपदा आई थी जिससे पाइप लाइन खराब होने-से पेयजल की थोड़ी-सी समस्या हुई है। मैं पंचेश्वर डैम बनने के पक्ष में नही हूँ क्योंकि हम कई पुश्तों से रह रहे हैं और अपना मकान, बाग़-बागीचा, सुविधाएं आदि ढंग से रहने के लिए हमने बना रखा है। पंचेश्वर डैम बनने से हमको यहाँ से उठाया जा रहा है। जो सुविधाएं हमने यहां बनाई हैं या हमें मिल रही हैं, क्या पता नई जगह पर मिलेगी या नहीं। हमारा यही मानना है कि यदि सरकार बांध बनाना ही चाहती है, हमें डुबाया न जाए और अगर सरकार हमें यहाँ से विस्थापित करना चाहती है तो यह सभी सुविधाएं वहां पर भी होनी चाहिए क्योंकि हमारा बसा बसाया परिवार है। अगर संयुक्त रूप से बसाया जाए तो बहुत अच्छा होगा
11-9-2017 – मैं बच्ची सिंह बिष्ट गाँव – देवलीबगड़, तहसील-भनौली, जिला-अल्मोड़ा उत्तराखंड से बोल रहा हूँ। यह पंचेश्वर महाकाली बाँध से पूर्ण रूप से डूब क्षेत्र में आने वाला गाँव है। यह गांव मूलभूत सुविधाओं जैसे स्वास्थ्य और सड़क से नहीं जुड़ा है, जो एक मुख्य समस्या है। इस गांव के चारों तरफ धान की खेती हो रही है। इनका कहना है कि-पंचेश्वर महाकाली बांध बनने पर इन लोगों को जबरजस्ती यहां से उठाया जा रहा है। लोग यहां से जाना नहीं चाहते क्योंकि इनके पास समृद्धि खेती, पशु-पालन, जंगल, पानी, और नदी है जिससे इनके सभी खेत सिंचित हैं।अभी यहां के लोगों से बात कर रहे है – वो अपनी समस्याएं को अलग -अलग तरीके से रख रहे हैं। लोग चाहते हैं कि भारत सरकार इनकी बात को सुने और पंचेश्वर बांध से इनको न डुबाया जाए। अगर विस्थापित होना है तो बाँध बनने से पहले इन विस्थापितों के लिए व्यवस्था होनी चाहिए।
11-9-2017 – मैं गोपाल जोशी ग्राम – कुनगडा, जिला अल्मोड़ा उतराखण्ड का रहने वाला हूँ। हमारी पहली समस्या स्वास्थ से संबंधित है जैसे हास्पिटल का न होना। सड़क और पेयजल की समस्या भो बानी हुई है। हम सरयू नदी के किनारे बसे हैं, इस घाटी के किनारे पर होने के कारण हम पूरी तरह समस्याओं से घिरे हुए हैं पर फिर भी हम गुज़र बसर कर रहे हैं और खुश हैं। हमें बांध नही विकास चाहिए जो इस क्षेत्र से अछूता रहा है।
11-9-2017 – मेरा नाम दतीराम ग्राम-देवलीबगड़, पोस्ट ऑफिस – धुरा, तहसील-धनौली, जिला -अल्मोड़ा का वासी हूँ। गाँव अधिकतर स्वास्थ्य की समस्या से पीड़ित है। गांव से डेढ़ किलोमीटर दूरी पर यातायात की सुविधा उपलब्ध है। अगर कोई बीमारी से पीड़ित होता है तो उसको वहां तक डोली से ले जाना पड़ता है। जल्द गांव तक सड़क हो जाएगी। अगर शिक्षा की बात करें तो हाईस्कूल कुंदला देवलीबगड़ में है वहां पर टीचर की आवश्यकता है जिसमे दो टीचर अभी भी नहीं आ रहे हैं।
11-9-2017 – मेरा नाम चन्द्र सिंह मेहरा है, मैं ग्राम -बुसैल, पोस्ट आफिस-नेचुना बुसैल, जिला-पिथौरागढ़ उत्तराखंड का निवासी हूँ। वे अपने गाँव में ANM केंद्र स्थापित करने में हुई परेशानी और विभाग की अनदेखी की बात कर रहे हैं। पूरी जानकारी के लिए सुनें
11-9-2017 – मेरा नाम राजेंद्र प्रसाद है, मैं ग्राम पंचायत-बुसैल, तहसील-गंगोलीहाट, जिला पिथौरागढ़ का वासी हूँ। मेरे गाँव की जनसंख्या 400 है। यहाँ का मुख्य व्यवसाय खेती है, गेंहूँ, धान, जौ,मटर, उड़द, बाजरा, मूंग आदि की फसल साल में दो बार होती है। पहले खेतों की सिचाईं नहर से होती थी पर अब बारिश पर निर्भर है। गाँव के लोंगो को राशन मिलता है। गाँव में स्वास्थ सम्बंधित समस्या है जैसे :- गाँव में कोई बीमार पड़ जाये या प्रसव के दौरान महिला को डोली में बैठाकर पहाड़ियों के रास्ते पैदल चलकर अल्मोड़ा या पिथौरागढ़ ले जाना पड़ता है। कभी-कभी तो रास्ते में ही प्रसव हो जाता है। इसलिए रोड होना बहुत जरुरी है। सरयू नदी की घाटी से पीने का पानी और सिचाईं करने के लिए कैनाल से पानी आता था पर गाडी की रोड आने से नहर धवस्त हो चुकी है जिसके कारण कई फलदार पेड़ भी बह गए हैं
11-9-2017 – नरेन्द्र कुमार ग्राम – बुसैल पोस्ट- नेचुना, जिला-पिथौरागढ़ उत्तराखंड का रहने वाला हूँ। हाई स्कूल गाँव में है। आगे की पढाई करने के लिए 10-12 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। यहाँ से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आधा किलोमीटर दूर स्थित है। यहाँ के लोग गेहूं,धान, मक्का की खेती करते है पर सूअर, पक्षी और लंगूर फसलों को बर्बाद कर देते हैं। उसका मुआवजा भी नहीं मिलता है। इस सम्बन्ध में न ही कोई अधिकारी जाँच करने आते हैं। हमारी एक राय है कि अगर पंचेश्वर बांध बनता है तो उसका मुआवजा पूरा मिले
मैं महेशचन्द्र ग्राम-गोरीछाल तोली, तहसील -धारचूला, जिला-पिथौरागढ़ का रहने वाला हूँ. मैं पंचेश्वर डैम के विषय में यह कहना चाहता हूँ कि 2013 की आपदा में हमारे गाँव की 213 नाली ज़मीन गोरी नदी में समा गई थी। जिसमें 15 परिवार बेघर हो गए थे। उत्तराखंड सरकार ने नाम-मात्र मुआवजा देकर उन आपदा प्रभावित लोगों को फिर से उसी नदी के किनारे बसा दिया। अब जो पंचेश्वर डैम बनने जा रहा है उससे ज्यादा लोग डरे हुए है और हम लोगों को पंचेश्वर डैम से पूरा खतरा है। अभी तक हमारी भारत सरकार ने कोई सुध नही ली है। ना हमारे गाँव में डैम संबधित कोई कर्मचारी आये है. महोदय, भारत सरकार से यही निवेदन है पंचेश्वर डैम की सर्वे दोबारा करवाई जाये तथा प्रभावित गाँव के लोंगों को उचित मुआवजे के साथ सुरक्षित जगहों पर बसाया जाए
मेरा नाम राजेंद्र प्रसाद है। मैं ग्राम -बुसैल, पोस्ट-ऑफिस -नेचुना, तहसील-गंगोलीहाट, जिला-पिथौरागढ़ उत्तराखंड का वासी हूँ। यहां मकर संक्रान्ति का त्यौहार सरयू घाटी में स्थित पंचेश्वर स्थान का खूब महत्त्व है जहाँ बहुत संख्या में लोग आते हैं। श्रावण / सावन के महीने में शिव पूजा का महत्त्व है। इन दिनों दस दिन तक लोग स्थानीय लोकगीत एवं सामुहिक नृत्य चांचरी गाते और नाचते भी हैं। कुमाउनी भाषा में गीत इस प्रकार है –
चांदी बटना दाज्यू कुर्ती कालर मा
मेरि मधुली जैरै ब्यूटी पार्लर मा ।।
यातू खानी खीरा
धाग हुनौ तोडि दिनू त्यार मुख तीर ।।
चांदी बटना दाज्यू कुर्ती कालर मा
मेरि मधुली जैरै ब्यूटी पार्लर मा ।।
संगत करनी भले भले की ,सुख मिले शरीरा
बैठना भला सुमिरन में, मरनी जमुना तीर ।।
भगवान् सिंह ग्राम – सेराघाट जिला अल्मोड़ा (उत्तराखंड) से हैं. सेराघाट, सरयू नदी की एक घाटी है. वे बता रहे हैं कि गाँव के लिए प्राथमिक और मिडिल स्कूल दो से ढाई किलोमीटर की दूरी पर पव्वाधार में है. यहाँ पिछले साल आपदा हुई थी. बारिश का पानी घर अन्दर जाने से तीन मकान गिर गए. इनका कहना है कि कई लोगों को दो-दो लाख मुआवज़ा मिला जबकि इनको सिर्फ 5000 रुपये मुआवजा मिला. धान, गेहूं, मक्का, मंडवा और बाजरा की खेती होती है. हरेला,उसाड़ी और दीवाली एक दिन का त्यौहार साल भर में मानते है
मेरा नाम अमर सिंह, उम्र 38 वर्ष। मैं ग्राम-पंचायत -सिदांग का सरपंच और तहसील-धारचूला, जिला-पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) का रहने वाला हूँ। हमारे ग्राम-सिदांग में एक समस्या है। यहाँ पर भू-स्खलन हो चुका है। यहाँ पहाड़ के कटान होने से गाँव में खतरा भी हो सकता है। हमारा गांव एक माइग्रेशन गांव है। यहां एक नदी आती है उसका भु-कटाव बहुत ज्यादा हो रहा है। वहां पर रहने वाले लोंगो को बहुत जयादा समस्यायें हो रही है। इसके बारे में ग्राम-पंचायत के माध्यम से आवेदन उत्तराखंड सरकार को बहुत बार किया लेकिन उस पर अनदेखी की गई। अभी तक उसका कोई जबाब नहीं आया। ऐसे ही कई वर्ष बीत गए हैं। अगर ये पहाड़ी खिसक गई तो उसके नीचे एक छोटी-सी नाली है उससे बहुत बड़ा खतरा हो सकता है। 2013 में जो आपदा आई थी, सरकार द्वारा उसकी जाँच कराने का कोई ध्यान नही दिया गया। इसके निवारण के लिए सरकार द्वारा कुछ सुविधा या चेक डैम या वृक्षारोपण की व्यवस्था या सुरक्षा दिवार बनाई जाए। यह उम्मीद हम सरकार से करते है।
सर नमस्कार, मै दुर्गा कोल झूलाघाट, जिला-पिथौरागढ़ से बोल रहा हूँ। झूलाघाट भी पंचेश्वर बांध के डूब क्षेत्र में आ रहा है। साहब, मैं 2013 से बेरोजगार और आपदा पीड़ित भी हूँ। मेरे इस मकान का क्या होगा ? मेरे रोजगार का क्या होगा ? मैं सरकारी रोजगार पाने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ ? सरकार हमारी सुन नहीं रही है और हमें बेरोजगार कर रही है . हमको इससे (पंचेश्वर बांध से) क्या मिलेगा ? ये हमें कब रोजगार देंगे ? मेरा क्या होगा ? कोई तो सुने हमारी ?
यह सन्देश विमल देवी, शोभा देवी, जानकी देवी, बलबती देवी और शांति देवी द्वारा दिया गया है। मैं पहले CRPF में जॉब करती थी और अब मिठाई की दूकान चलाती हूँ। पंचेश्वर बांध के बारे में हम कहना चाहते हैं। अभी तक ये पता नही कि मुआवजा मिलेगा कि नहीं, रोज़गार भी मिलेगा कि नहीं। ये तो गलत है। या तो हमें पंचेश्वर बांध से ऐसी जगह विस्थापन करना चाहिए, जहां सहूलियतें हों, मुआवजा भी देना चाहिए । यह सब कुछ देना चाहिए तभी हम हटेंगे नहीं तो बिल्कुल यहाँ से नहीं हटेंगे । यह जगह हमारी जन्मभूमि है, यहाँ से जाना अच्छा नहीं लगेगा, मन नहीं मानेगा। अन्तः सरकार को भी चाहिए कि इन सब बातों का ध्यान रखते हुए मुआवजा और सम्पूर्ण विस्थापन पर विचार करे।
15-July-2017: – नमस्कार, मै ललित पंत, ग्राम तारागढ़ा, पोस्ट – सल्ला, तहसील-जिला – पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) से हूँ . जो ये पंचेश्वर बांध बनता है तो डूब क्षेत्र में है। डूब क्षेत्र के विस्थापन को लेकर स्थानीय निवासी चिंतित है। समाचार पत्रों में जनसुनवाई की भी चर्चा चल रही है , जनसुनवाई का स्थान जिले में रखा है। जिला डूब क्षेत्र से 40 किलो-मीटर की दुरी पर है। डूब क्षेत्र के लोग निर्धन और गरीब है, दूरी अधिक होने से जनसुनवाई में नही पहुँच सकते है। स्थानीय लोग चाहते है कि जनसुनवाई डूब क्षेत्र में हो, जिससे वह अपनी बात कह सके . जनसुनवाई में स्थानीय लोगो को भी शामिल किया जाय। हमारा स्वयं सेवी संस्थाओं से भी आग्रह है की ऐसी स्थिति में क्षेत्र वाशियों को मार्गदर्शन दे प्रधानमंत्री जी भी पंचेश्वर बाँध के बारे में चर्चा की थी . हम यह सन्देश प्रधानमंत्री जी के तक पहुँचाना चाहते है की जनसुनवाई में डूब क्षेत्र में ही हो। डूब क्षेत्र का ठीक से विस्थापन और जनसुनवाई में स्थानीय लोगो को भी शामिल करें। सुबिधा नही होने अधिकारी डूब क्षेत्र में नही आना चाहते है ,डूब क्षेत्र में सुबिधा न होने से डूब क्षेत्र से जा चुके है जो लोग अभी डूब क्षेत्र में रह रहे है अशिक्षित और निर्धन है वो लोग अपनी बात स्थानीय लोगो के माध्यम से ही रख सकते है। धन्यबाद
नमस्कार मै ललित पंत, ग्राम तारागढ़ा पोस्ट -सल्ला तहसील-जिला – पिथौरागढ़ उत्तराखंड से हूँ . मैं पंचेश्वर डैम के बनने से डूब क्षेत्र में रहता हूँ। गाँव की समस्या मुख्य रूप से रोड और अस्पताल न होने से बीमार व्यक्ति को रोड में पहुचने के लिए डोली का सहारा लेना पड़ता है , जो मुख्यतः 6-7 किलो मीटर का खडी चढ़ाई है। ग्राम में कक्षा 6 के बाद गाँव में स्कूल नही है .बच्चे 6-7 किलो मीटर की चढ़ाई करके स्कूल चलकर पहुंचते है या तो पढाई छोड़ देते है। गाँव में सभी लोग अशिक्षित है। साग-सब्जी फल-फूल अच्छी मात्र में होते है जो मुख्य रूप से कटहल ,केला ,आम ,अमरुद होता है जो रोड की सुविधा न होने से बाजार पर नही पहुँच पता है। जिसका गाँव वाले को कोई लाभ नही होता है। समय-समय पर पंचेश्वर बाँध की चर्चा चलती है। जिसके कारण टनकपुर-जौलजीवी का काम भी रुका है। पंचेश्वर बाँध की चर्चा न होती तो आज तक यह रोड पूरी बन जाती और क्षेत्र का विकास भी हो जाता है। अगर सरकार बांध ही बनाना चाहती है तो इसमें तेजी दिखाए ताकि गाँव का ठीक से विस्थापन हो और उचित व्यवस्था हो। अन्यथा बाँध नही बनता है तो सड़क निर्माण कराया जाए। गाँव के विकास का योगदान होगा। इस बात को लेकर लोंगो में काफी चिंता है कहाँ विस्थापन करेंगे और कहाँ व्यवस्था होगी। गाँव वाले से किसी अधिकारी या विभाग ने संपर्क नहीं किया। गाँव वाले इसी आशा में रहते है कभी तो हमारे गाँव तो जुड़ेगा। अधिक मात्रा में गाँव वाले रोड न होने से गाँव छोड़ चुके है। बड़ा दुःख होता है जब गाँव में बुजुर्ग माता-पिता ही घर की रखवाली करते है।
नरेन्द्र बदायु (उत्तर प्रदेश) से परिवार के 3 सदस्य पूर्णागिरी के दर्शन करने के लिए चार से अधिक बार आ चुके है. अधिकतर आकर टुन्यास धर्मशाला में रुकते है और सुबह होते ही दर्शन करके ब्रम्हदेव आ जाते है फिर शाम को अपने घर की ओर लौट जाते है. उत्तराखंड सरकार आपातकालीन सेवा 100 पुलिस ,108 एम्बुलेंस और 102 जननी सुरक्षा यदि शुरू न हो तो शुरू कराया जाये.
समस्या एवं सुधार
नि:शुल्क ठंडापानी रोड (ठुलीगाड़ से टुन्यास तक) में व्यवस्था हो
नि:शुल्क शौचालय बनबाया जाये
पैदल यात्रियों(ठुलीगाड़ से टुन्यास के बीच-बीच में पानी वाले हैंडपंप में सुधारहोना चाहिए
सरकार द्वारा धर्मशाला शौचालय /स्नानागार बनबाया जाये
108 एम्बुलेंस (चिकित्सा सेवा) आपातकालीन सेवा उपलब्ध हो
100 (पुलिस) आपातकालीन सेवा उपलब्ध हो
अनिल सिंह राठौर रुद्रपुर, जिला-उधमसिंहनगर (उत्तराखंड) 08/05/2017 को पूर्णागिरी में दर्शन करने के लिए परिवार से 10 सदस्य आये. ये चार वर्ष से लगातार दर्शनों के लिए आ रहे है. आप एक रात टुन्यास धर्मशाला में विश्राम भी किये है. यहाँ की सफाई व्यवस्था ,पानी ,शौचालय और स्नानागार अच्छा है. मंदिर से लौटते वक्त थोडा थकान भी महसूस हुआ. इनके परिवार के पूर्णागिरी में कुछ समस्या एवं सुधार कराने की निम्न बात किये हैसमस्या एवं सुधार
ठुलिगाड और टुन्यास के प्रवेश द्वार में सामान चेक करने वाली मशीन (जैसे दिल्ली के मैट्रो स्टेशन में) होनी चाहिए
दुकानदार द्वारा प्रसाद 251 रुपये का दिया गया जबकि वही प्रसाद अगर टनकपुर में लिया जाए तो 50 रुपये का मिलेगा. उचित रेट में प्रसाद दिया जाय
धर्मशाला में सबसे पहले अच्छे स्थान पर रोका जाता है और मंदिर में दर्शन करके वापस आने पर दुसरे जगह में भेज दिया जाता है. उसमे शौचालय की सुविधा अच्छी नही होती है
धर्मशाला के अन्दर शौचालय /स्नानागार में पानी कम उपयोग करने देते है
चिकित्सा सेवा उपलब्ध नही
मुकेश कुमार ग्राम -अतरौली जिला अलीगढ (उत्तर प्रदेश) से परिवार के 07 सदस्यों के साथ आये है. यहाँ दूसरी बार आये है. इनकी बहन नीरज का स्वास्थ रात में ख़राब होने से उल्टी होने लगी. इसके रोकथाम के लिए टनकपुर से टुन्यास धर्मशाला तक दवा की खोज करते रहे लेकिन दवा नही मिली जबकि जिला पंचायत द्वारा चिकित्सा सेवा उपलब्ध करायी गयी लेकिन वहां पर कोई भी उपस्थित नही थासमस्या एवं सुधार
नि:शुल्क ठंडापानी की व्यवस्था हो
चिकित्सा सेवा उपलब्ध हो
ओम प्रकाश ग्राम-नगलावाले शाबरगेट, जिला-कासगंज (उ०प्र०) परिवार से 08 सदस्य पूर्णागिरी मेंले में पहली बार आये हुए है। इनके द्वारा बताया गया की जब श्रद्धालू मंदिर से दर्शन करके वापस लौटते समय जितने रास्ते में धर्मशाला पड़ते है तो किसी को बैठने नही दिया जाता है उनका कहना है की आप जहां अपना सामान (प्रसाद) लिए है वहां जा कर बैठो और भगा दिया जाता है
आकाश जिला सम्भलपुर (उ०सि०न०) पूर्णागिरी मेले में चौथी बार अपने 55 मित्रो के साथ माँ के दर्शन करने आये. एक रात टुन्यास धर्मशाला में रुके वहां की सफाई व्यवस्था अच्छी थी. उन्होंने ये निम्न जानकारी दिए –
चिकित्सा सेवा उपलब्ध नही
दर्शन करने वाले श्रद्धालूओ की लाइन महिला/पुरुष की अलग-अलग लगाई जाये मंदिर में चढ़ने बाला एक प्रसाद को सालों-साल (प्रसाद (नारियल) दुकानदार से लेकर श्रद्धालू मंदिर में चढ़ाता है लेकिन वैसे का वैसे पुजारी द्वारा फिर वाही प्रसाद वापस उसी दुकान में चला जाता है) चलाया जाता है
श्रद्धालूओ को दर्शन 1 मिनट भी नही करने दिया जाता है
अशोक कुमार (पूर्णागिरी मेला 80 सफाई कर्मचारियो का ढेकेदार) ठुलीगाड़, टुन्यास से पूर्णागिरी मंदिर तक इनके 80 सफाई कर्मचारी सफाई व्यवस्था (रोड सफाई) में लगे है जिनको 7000-9000 रूपये प्रत्येक व्यक्ति को मिलता है. जब इनसे जानकारी लिया गाया तो इनका कहना है कि जिला पंचायत चम्पावत से ठेका में मुझे ठुलीगाड़, टुन्यास से पूर्णागिरी मंदिर तक का है. * (ठोस कूड़े के निस्तारण पर रुपये 16,51,052.00 का व्यय आता है जिसके निस्तारण के लिए मेला अवधि में 80 सफाई कर्मचारी नियुक्ति किये गए है. उन्होंने बताया की मल-जल निस्तारण हेतु सैफ्टिक टैंक बनाये गए है लेकिन सीवर नही लगाया गया है)यहाँ सफाई के दौरान जो भी कूड़ा निकलता है उसके निस्तारण के लिए कुछ नही है बल्कि समस्त कूड़ा नदी में फेक दिया जाता है और बरसात के पानी के साथ पूरा कूड़ा-कचरा बह जाता है। नदी का पानी मठ-मैला हो जाता है जो पीने योग्य नही रहता है.
प्रबन्धन (सफाई-कर्मचारियों) द्वारा मेला आधिकारी को कई बार अवगत कराया गया लेकिन अभी विभाग द्वारा कोई कार्यवाही नही हुयी है। ठुलीगाड़ में नल जल योजना (बड़ी पानी की टंकी ) के तहत बनबाया जाये ताकि पानी पीने का स्वच्छ मिल सके. अभी झरने का पानी मिल रहा है जो बरसात के समय वो भी ख़राब हो जाता हैं.
महिला सशक्तिकरण बाल विकास परियोजना (आँगनवाड़ी कार्यकर्ता समस्त ) बहुउद्देशिय शिविर – श्री मती ममता देवी आँगनवाडी कार्यकर्ता केंद्र – सियाला एवं श्रीमती आरती देवी आँगनवाडी कार्यकर्ता केंद्र –तुमडानीगेटबहुउद्देशिय शिविर महिला सशक्तिकरण बाल विकास परियोजना (आँगनवाड़ी कार्यकर्ता समस्त ) जनपद पंचायत टनकपुर-बनबसा द्वारा आयोजन पूर्णागिरी मेले के शुरुआत से अंतिम तक एक दिन में दो आगनवाडी कार्यकर्ता द्वारा ठुलीगाड़ मेला आधिकारी के बगल में शिविर लगाया जाता है. श्रीमती ममता देवी आँगनवाडी कार्यकर्ता केंद्र – सियाला एवं श्रीमती आरती देवी आँगनवाडी कार्यकर्ता केंद्र -तुमडानीगेट को उपस्थित है .
प्रत्येक आँगनवाडी कार्यकर्ता द्वारा पूर्णागिरी मेले से आने वाले श्रद्धालू से बात-चीत कर उनको भी बाल विकास परियोजना के बारे में ये निम्न जानकारी देते है
पूरक पोषण आहार –
स्वास्थ्य जांच –
संदर्भ सेवाएँ –
टीकाकरण –
पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा –
स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा –
कन्या भ्रूण हत्या आदि।
नोट :- * जिले के विभिन्न आंगनबाड़ी केन्द्रों में पंजीकृत बच्चों की संख्या 23 424 है। इसमें 4560 कुपोषित तथा 301 अतिकुपोषित हैं। यह आंकड़े वर्ष 2013 से 2017 जनवरी तक के हैं। पिछले चार वर्षों में कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों की संख्या में काफी कमी दर्ज की गई है। जिले में 397 पूर्ण आंगनबाड़ी केन्द्र एवं 284 मिनी आंगनबाड़ी केन्द्र हैं
Bhuvan Garkoti from Banbasa is telling about the ongoing Purnagiri mela where people from various।ndian states and Nepal visit the temple. He is informing that if some children are separated, one can take help of police beat located at Thuligad. He also tells about human trafficking in this border area and request for any information about such instances which will help save few lives from falling into the trap of evil hands.
Mahesh Ram from Sirmoda village is telling that they have stopped consuming water from a source because of a thick white brown deposit settled in the tank and many times they have to clean the pipes too as chunks/pieces come alongwith water through pipes. This village is enroute Jhulaghat.
Bachi S Bisht is giving information about a small meeting in Rameshwar (Confluence of Saryu and Eastern Ramganga) on 22 April and asking the local groups to come and participate.
Umed singh negi from gram sabha chakarpur bilhari is telling about poor state of health, road, electricity and other basic services in the village
Message from a resident in Mahakali basin telling about probably submergence of area due to the proposed dam and that better rehabilitation package must be ensured whenever the project materialises and possible employment must be thought about for long term sustenance
Ganesh Bohra from Chuka at the foothill across Purnagiri shrine is telling about the chalthi and Ladhiya valley and how people are struggling with wild boar problem in the region. Click here to read news about the issue.
Bachi Singh Bisht from Ganai Gangoli is telling about the river confluence meetings on the issues in valleys from 16th April to 26th April at 3-4 places, pl listen for more details.
Rajendra Prasad from Ladhiya valley is apprising of the 5th March conclave where suggestions were given by participants to form a committee to formulate a plan for valley. He briefly gave broad examples of floriculture, horticulture and cottage industry. Read News related to the issue
बची सिंह बिष्ट शेराघाट घाटी में बैठक के बारें में बता रहे है जिसमे जयगंगा, जयगढ़, सरयू एवं सुरूर घाटी के साथी अपनी समस्याओं पर चर्चा कर रहे हैं
दीवान सिंह मेहता सेराघाट, सरयू घाटी के रहने वाले हैं और उनका कहना है कि यहाँ प्रदुषण की समस्या है और उन्होंने गंगा सफाई अभियान को एक अच्छा कदम बताया और बाकी सभी लोगों को जुड़ने और साफ़ सफाई रखने की गुज़ारिश की।
ललित पन्त जी ने डूब क्षेत्र को कहाँ विस्थापित किया जाएगा उस पर सूचना मांगी है (पर वह किस क्षेत्र की बात कर रहे हैं उन्होंने नहीं बताया)
नई दिल्ली से पूजा गुप्ता बता रही हैं की पिछले सप्ताह उत्तराखण्ड के चम्पावत जिले में कुछ स्थानीय निवासियों के साथ एक जन सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसके माध्यम से ये जानकारी मिली कि यहाँ जानवरों का आतंक काफी बढ़ गया है विशेष कर सूअरों का आतंक ! इसके अलावा जलवायु परिवर्तन से जो स्थिति हुई है उससे कृषि पर काफी प्रभाव पड़ा है ! लोगो ने यह भी बताया की अगर उन्हें मत्स्य पालन की सुविधा,फलों और फूलो से चलने वाले छोटे-छोटे स्थानीय उद्योग की सुविधा दी जाए तो उनके लिए अच्छा होगा !
राधा खनका उत्तरापंथ सेवा संस्था (मुवानी) से जुडी हैं और वह सूअर व अन्य जंगली जानवरों से उत्पन्न हुई समस्या का विवरण कर रही हैं। यह भी बता रहीं हैं कि जंगल कटने से जल और जल वायु परिवर्तन हो रहा है, भूस्खलन पेड़ों के काटने से बढ़ता जा रहा है – १० साल पहले के जंगल हरे भरे थे
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