*आज तक वन अधिकार समितियों को कानून की जानकारी नहीं, प्रशिक्षण की कमी चिंताजनक: सिरमौर वन अधिकार मंच*
*प्रेस विज्ञप्ति: नोहराधार | 5.09.2021:* सरकारी वन भूमि पर जनता के अधिकारों को मान्यता देने वाले वन अधिकार कानून की बहाली में विलम्ब को ले कर सिरमौर वन अधिकार मंच के सदस्यों ने आज नोहराधार की 13 पंचायत प्रधानों के साथ बैठक के माध्यम से वन अधिकार कानून की जानकारी दी। गौरतलब है कि वन अधिकार कानून (FRA) जो कि भारतीय संसद द्वारा पारित एक अत्यंत महत्वपूर्ण कानून है के क्रियान्वयन में हिमाचल देश के बाकी प्रदेशों से बहुत पीछे है लेकिन उसमें भी सिरमौर जिला सबसे पिछड़ा है।
ध्यान में रखने वाली बात है कि FRA के तहत सभी प्रकार कि वन भूमि जिसपर कृषि या फिर आवास के लिए लोगों के 13 दिसम्बर 2005 के पहले के कब्ज़े हैं उनको कानूनी मान्यता देने का प्रावधान है. सिरमौर के समुदाय इस कानून में अन्य परम्परागत वन निवासी की श्रेणी में आते हैं और इसके अंतर्गत पात्र दावेदार हैं. इसके अलावा कानून में वन भूमि के सामूहिक उपयोग – जैसे घास, चारा, इंधन आदि के लिए सामूहिक अधिकार भी प्राप्त किये जा सकते हैं. अधिकार प्राप्त होने के बाद इसको राजस्व जमाबंदी में दर्ज किया जाता है.
‘पूरे ही सिरमौर में वन अधिकार कानून की जानकारी का अभाव है साथ ही 2002 मे राज्य सरकार की रेगुलराइज़ेशन पालिसी के असफल होने की वजह से लोगो को बेदखली का डर है। परन्तु ये कानून संसद द्वारा पारित है और लोगों को ये आश्वस्त करना सरकार का काम है ताकि लोग अपनी दावेदारी के फार्म पेश कर सकें । ऐसे तो हर गांव में वन अधिकार समिति (FRC) बनाई गई हैं लेकिन अधिकतर जगहों में FRC के सदस्यों को उनकी जिम्मेदारी या दायित्वों की जानकारी नही हैं और नाहीं कानून के तहत दावे भरने की प्रक्रिया की ‘, प्रकाश भंडारी, हिमधरा पर्यावरण समूह |
‘2019 में तैयार की गई सरकारी प्रशिक्षण सामग्री खासकर FRC को मार्गदर्शन देने के लिए बनाई गई पर आज तक वो FRCs तक पहुंची नही है और या तो पंचायत या BDO कार्यालय में पड़ीं हैं। FRC के सदस्य, प्रधान व वन अधिकार कानून की प्रक्रिया से जुड़े सभी अधिकारियों का प्रशिक्षण व इस कानून की प्रशिक्षण पुस्तिका का वितरण जल्द से जल्द किया जाना चाहिए’, ज़िला परिषद सदस्य, पृथ्वीराज चौहान ने कहा ।
‘वन अधिकार कानून के तहत दावा फॉर्म भरने की प्रक्रिया में सबसे बड़ी समस्या मौजा स्तर पर ग्राम सभा का कोरम पूरा करने में आती है। इसलिए जहां ज़रूरत है वहां उप गांव, टोला, पत्ती स्तर पर FRC के पुनर्गठन में प्रशासन को सहयोग देना चाहिए’, रमेश वर्मा, अध्यक्ष, किसान सभा, सिरमौर ।
सूचना के अधिकार से प्राप्त हुई जानकारी अनुसार पुरे सिरमौर में अभी तक कुल 40 व्यक्तिगत व 2 सामुदायिक दावे फ़ाइल किये गए जिनमे से कई दावे ढाई साल से अधिक समय से उप मंडल स्तरीय समिति (SDLC) के समक्ष ही लंबित है और कानून के अस्तित्व में आये लगभग 15 सालों के अंतराल में आज तक एक भी दावा जिला स्तरीय समिति (DLC) तक नही पहुँचा है । 6 में से 4 तहसील में आज तक एक भी दावा फॉर्म नही भरा गया है, गुलाब सिंह, सिरमौर वन अधिकार मंच।
पूरे जिले में इतने कम दावे होने का कारण उपर्युक्त मुद्दों के अलावा प्रशासनिक मंशा में कमी व प्रशासनिक अधिकारीयों में भी कानून को ले कर कई भ्रम है। दावा फॉर्म भरने के लिए साक्ष्य दस्तावेजों के मिलने में बहुत देरी होती है और कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। उस पर भी दस्तावेजों के उर्दू भाषा में होने के कारण उनके अनुवाद का खर्चा भी गाँव के लोगों पर पड़ता है जो हजारों में होता है | वन अधिकार कानून को आये 15 साल से अधिक हो चुके हैं लेकिन राजनैतिक इच्चाश्क्ति की कमी के चलते कानून को लागू करने के लिए ज़रूरी कदम आज तक नहीं उठाये गये।
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