मेरा – प्रेम

मेरा यह अनन्त प्रेम,
सिंह के समान पराक्रमी,
हाथी के समान स्वाभिमानी  ।।1।। 

वृषभ के समान भद्र,
मृग के समान सरल,
पशु के समान निरीह,
वायु के समान नि:सर्ग ।।2।।

सूर्य के समान तेजस्वी,
सागर के समान गंभीर,
मेरु के समान निश्चल,
चंद्रमा के समान शीतल ।।3।।

मणि के समान क्रांतिमान,
पृथ्वी के समान सहिष्णु,
सूर्य के समान अनियत आश्रयी,
तथा आकाश के समान निरावलम्बी है ।।4।।

यदि ऐसा होता…..

जिस पर मैं विश्वास कर सकता,
और अपना प्रेम प्रकट कर सकता,
इतने निकट से देख पाता ।।5।।

वह मेरे आनंद,
मेरे अनंत प्रेम ,
मेरे रूप-रंग आकृति में,
मेरे शुद्ध अन्तस में,
एक रूप हो जाता ।।6।।

वह मेरे विचारों में…..

मेरे साथ आत्मा-तीत होकर,
दु:ख-पीड़ा अव्यक्त विचार,
अभिलाषा, कल्पना और उत्कंठा से,
मेरे जीवन में एक हो जाता ।।7।।

डॉ.रमेश पन्त