दो जवान बेटों की असमय मौत से बुरी तरह टूट चुके 65 वर्षीय सरदइयां गोंड़ के ऊपर परिवार के भरण-पोषण की जवाबदारी है। जिंदगी से हताश व हर समय गुमसुम रहने वाले सरदइयां ने बताया कि उसके दो जवान बेटों (धनकू 30 वर्ष तथा राजेश 27 वर्ष) को सांस की बीमारी सिलिकोसिस ने लील लिया है। बेटों की मौत के बाद बहुएं घर छोड़कर जा चुकी हैं। अब दो नाती तथा एक नातिन व पत्नी के पालन-पोषण की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है। यह दु:खद कहानी मध्यप्रदेश के पन्ना जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर आदिवासी बहुल बड़ौर गांव की है। पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूरों के कम उम्र में ही असमय काल कवलित होने से इस गांव में विधवा हो चुकी महिलाओं की भरमार है।
गांव में नए-नए उम्र के न जाने कितने लड़के खत्म हो गये। सरदइयां गोंड बताते हैं कि पत्थर खदान में बमुश्किल 10-15 साल काम करते हैं, फिर बीमार पड़ जाते हैं। एक बार बीमार पड़े तो फिर काम करने लायक नहीं बचते। थोड़ी दूर चलने से ही सांस फूलने लगती है। यह ऐसी बीमारी है कि घुट-घुट कर मरने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। इसी माह जुलाई में बीते रोज जब हम बडौर गांव पहुंचे तो सुबह लगभग 11 बजे यहां सन्नाटा पसरा था। गांव के गुडयाना मोहल्ला में पुराने इमली के पेड़ की छांव में सरदइयां गुमसुम बैठा हुआ था। गांव की गलियों में इक्के-दुक्के मवेशी व छोटे बच्चे नजर आ रहे थे।
पेड़ के नीचे छांव में हमने अपनी बाइक खड़ी कर सरदइयां से बातचीत शुरू की। इस बीच खांसते हुए बडौर के ही निवासी प्यारेलाल साहू 60 वर्ष आ गए। सरदइयां गोंड़ ने बताया कि गांव में 50 से भी ज्यादा विधवा महिलाएं हैं, इनमें कई महिलाएं कम उम्र की भी हैं। प्यारेलाल साहू जो खुद सिलकोसिस से पीड़ित हैं, उन्होंने बताया कि पन्ना में ना तो जांच की कोई व्यवस्था है और ना ही इलाज की। यहां डॉक्टर बीमार पडऩे पर टीबी (क्षय रोग ) बता देते हैं और टीबी का ही इलाज चलता है। पिछले माह 20 जून को सिलिकोसिस पीड़ित बडौर गांव के ही सुखनंदी गोंड़ 58 वर्ष की मौत हुई है।
प्यारे लाल ने बताया कि एक साल के भीतर एक ही परिवार के तीन सगे भाई मुन्ना गोंड़ 35 वर्ष, बलमू गोंड़ 25 वर्ष तथा मुलायम गोंड़ 30 वर्ष खत्म हुए हैं। तीनों पत्थर की खदानों में काम करते थे। बीमारी के चलते अत्यधिक कमजोर हो चुके प्यारेलाल ने अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया कि अब वह मेहनत का कोई काम नहीं कर सकता। उसके दो बेटे हैं जो अलग रहते हैं। मेरे साथ पत्नी व एक अंधी बहन है, जिनका भरण-पोषण गुटका व बीड़ी बेचकर किसी तरह करता हूं।
पत्थर खदान मजदूरों व कुपोषण पर काम करने वाली समाजसेवी संस्था पृथ्वी ट्रस्ट के रविकांत पाठक बताते हैं कि संस्था के पूर्व संचालक यूसुफ बेग जिनका कोरोना संक्रमण के चलते बीते माह निधन हो गया है। उनकी पहल व प्रयासों से 2010 में इन्विरोनिक्स ट्रस्ट दिल्ली ने पन्ना के पत्थर खदानों में काम करने वाले 43 मजदूरों की जांच केम्प लगा कर करवाई थी, जिनमें 39 मजदूर सिलिकोसिस पीड़ित पाए गए थे। फिर पत्थर खदान मजदूर संघ की पहल से वर्ष 2012 में 104 मजदूरों की जाँच कराई गई, उसके बाद से किसी भी मजदूर की सिलिकोसिस जाँच नहीं हुई। दो जाँच कैम्पों में जिले के 122 मजदूरों में सिलिकोसिस की पुष्टि हुई थी। आपने बताया कि पन्ना जिले के ग्राम बडौर, पन्ना, मडैयन, दरेरा, मनौर, माझा, गॉधीग्राम, सुनारा, जनकपुर, तिलगवॉ, खजरी कुडार, कल्याणपुर, पुरूषोत्तमपुर, मानशनगर, जरधोबा, मनकी, जरूआपुर, पटी, जमुनहाई में सिलीकोसिस पीड़ित मरीज पाए गए हैं।
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