हमारा समाज जितना स्वच्छ और सुरक्षित पुरुषों के लिए है उतना महिलाओं के लिए नहीं है। खासतौर पर औरतों के शरीर और स्वास्थ्य को लेकर। औरतों को प्रत्येक महीने मासिक धर्म के चक्र से होकर गुजरना पड़ता है जहाँ शारीरिक पीड़ा के साथ उसे तमाम सामाजिक पीड़ा भी सहनी पड़ती है। भारत ही नहीं दुनियाँ के कई देशों में अब भी, मासिक धर्म की इस प्रक्रिया को महिलाओं के चरित्र, भाग्य और स्वक्षता को लेकर परिभाषित किया जाता है। इस दौरान उनके पानी छूने, खाना बनाने और धार्मिक या साँस्कृतिक आयोजनों में हिस्सा लेने पर पाबंदी होती है। कई बार उन्हें घर से बाहर धकेल दिया जाता है और बाहर किसी झोपड़े में रहने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसे में उन्हें सुरक्षा और बीमारी के ख़तरों का सामना करना पड़ता है। मासिक धर्म के दौरान पितृसत्तात्मक नियंत्रण और महिलाओं के व्यवहार और आवाजाही पर पाबंदियाँ उनके समानता के अधिकार को कमजोर बनाती हैं। कलंक और शर्मिंदगी का एहसास उन्हें जिस तरह से कराया जाता है वह उन्हें कमजोर कर देता है जिसका असर ये होता है समाज और परिवार के साथ – साथ स्वयं महिलाएं भी अपने शरीर और स्वास्थ्य पर बात करना पसंद नहीं करती। परिस्थितियाँ हमें किसी भी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है और जब हम उसे उद्देश्य बना लेते हैं तो स्वस्थ समाज का विकास होता है, इस बात को हमने गंभीरता से तब समझा जब 2004 में भारत के दक्षिण राज्यों में सुनामी तूफ़ान ने सब कुछ पूरी तरह तबाह कर दिया। इंविरोनिक्स ट्रस्ट के कार्यकर्ता भी उस दौरान सुनामी प्रभावित क्षेत्र में अपनी सेवा देने पहुचें थे। एक दिन शिविरों में काम करने के दौरान हमारी नज़र महिलाओं और बच्चियों पर गयी। यूँ तो उस समय वहां दुःख और पीड़ा के सिवाय कुछ नहीं था लेकिन उन लोगों की परेशानी कुछ और भी थी । हम उनके पास गए और जानने की कोशिश की –
हमने पुछा क्या हुआ?
वो संकोच में थी लेकिन थोड़ा प्रयास करने पर बोली यहाँ सब खाना, कपडा, दवाई रहे है लेकिन उन दिनों के बारें में कोई कुछ नहीं कर रहा !
हमने कहा- उन दिनों का मतलब?
उसने बताया की वो मासिक चक्र से गुजर रही है तूफान ने सब कुछ तबाह कर दिया उसके पास कोई कपडा नहीं जिसे वो इस्तेमाल कर सके।
बच्ची रो रही थी पीड़ा और शर्म से सिकुड़ी जा रही थी। हमें अहसास हुआ सच है इस बारे में तो हमने सोचा ही नहीं। हमने तुरंत सैनेटरी पैड मंगवाये और बाँटे। सुनामी में तबाह हुए परिवारों में महिलाओं की संख्या हजारों में थी। जैसा मैंने शुरुवात में कहा परिस्थितियाँ हमें किसी भी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है और जब हम उसे उद्देश्य बना लेते हैं तो स्वस्थ समाज का विकास होता है। इंविरोनिक्स ट्रस्ट की टीम ने यह निर्णय लिया की हम सभी महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन बनाकर देंगे। नैपकिन बनाने का विचार इसलिए आया क्योंकि बाजार में मिल रही सेनेटरी नैपकिन बहुत हीं महँगी थी। उस समय संस्था ने सत्तर हज़ार सेनेटरी नैपकिन बनाये और महिलाओं में बाँटी। इस घटना ने हमें मज़बूर कर दिया कि हम महिलाओं की इस समस्या के प्रति समाज की शर्म और चुप्पी की चादर को हटाएंगे और शुरू हुआ मासिक धर्म के प्रति सजग और सुरक्षित होने का सफर।
हमारी संस्था इंविरोनिक्स ट्रस्ट पिछले कई सालों से पर्यावरण सुरक्षा के साथ साथ सामुदायिक विकास जैसे जेंडर समानता, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक सुरक्षा आदि मुद्दों पर कार्य कर रही है। संस्था के सदस्यों के साथ बातचीत के दौरान यह निर्णय हुआ कि सबसे पहले हमें सेनेटरी पैड की उपलब्धता पर काम करना होगा कैसे हम सस्ता और गुणवत्तापूर्ण पैड उपलब्लध करा सकते है ? अंत में ये निर्णय हुआ की संस्था पैड निर्माण की यूनिट लगाएगी और इस यूनिट में महिला सदस्यों को कार्यभार दिया जाएगा ताकि इस प्रक्रिया से जुड़ने के साथ-साथ वे अपने शरीर और स्वास्थ्य के प्रति सजग और जागरूक हो सकें। अब हम इस विषय के साथ महिलाओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा के आधार पर महिला सशक्तिकरण मुद्दे को लेकर आगे बढ़ने लगे।
देश के हर हिस्से में जहाँ संस्था पहले से सामाजिक विकास के लिए कार्य कर रहीं हैं, उन क्षेत्रों में महिलाओं से उनके स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं पर बात करना शुरू किया। पहले हमने स्वास्थ्य से जुडी जानकारी देना शुरू किया क्यूँकि आज भी भारत में महिलायें मासिक धर्म से जुड़ी बातें करने में शर्माती हैं। कोई पुरुष साथ हो तब तो महिलायें मासिक धर्म के बारे में बिल्कुल भी बात करना नही चाहतीं थीं। कुछ महिलायें तो महिला कार्यकर्ताओं से भी इस सन्दर्भ में बात करना नहीं चाहती थीं। उनके लिए तो हम एक ऐसे अजूबे थें जो ऐसी बात कर रहें थें जो आज तक कभी उनकी माँ, बड़ी बहन, दादी-नानी या कोई भी महिला रिश्तेदारों ने भी नहीं किया था। हमें देखकर तरह तरह की बातें करती और खूब हँसती थी।
जब हमने उनसे पूछा कि आप सभी क्यों हंस रहीं हैं ?
तब उनका जबाब था आपको शर्म महसूस नहीं होती ऐसी बातें करने में, इन फालतू चीजों पर भी कोई बात करता है क्या?
जरुरत हीं क्या है इस सन्दर्भ में बात करने की? जब हमने उन्हें मासिक धर्म के समय स्वास्थ्य सुरक्षा की जरुरत क्यों है ,इसकी जानकारी दी तब काफी महिलायें सामने आयी और उन्होंने हमें बताया कि उन्हें तो पता ही नहीं था, मासिक चक्र के दौरान साफ सफाई नहीं रखने से उन्हें खतरनाक बीमारियाँ भी हो सकती हैं। बार-बार मासिक धर्म और स्वास्थ्य सुरक्षा के बारे में बात करने से महिलायें हम सबसे सहज होने लगी हैं और अब धर्म से जुड़े तथ्यों की हम सबसे चर्चा करती हैं और हमें आश्वस्त कराती हैं कि वो खुद और अपने आगे वाली पीढ़ी को मासिक धर्म से जुड़ी बातें जरूर बताएंगी। ज्यादातर महिलाओं ने कहा दिनों में वो कपड़े का इस्तेमाल करती हैं जो उनके परिवार की महिलायें पीढ़ी दर पीढी इस्तेमाल करती आ रहीं हैं। बचपन से लेकर (जब पहली पीररयड आयी) अब तब हम उन दिनों में बहुत हीं असहज होते हैं। साफ सफाई तो दूर की बात है हमें उन दिनों सबसे अलग़ कर दिया जाता है, हम घर के रसोई में भी नहीं जा सकते क्योंकि पुरानी परंपराओं के अनुसार हम अपवित्र होते है। हमें घर का एक कोना दे दिया जाता है जहाँ हमें वो पाँच दिन गुजारने होते हैं। वहीं एक समस्या यह भी है कि सेनेटरी नैपकिन उनके गांव में आसानी से उपलब्ध नहीं है और अगर कभी उपलब्लध होती है तब बहुत महँगी होती है।
क्षेत्र की स्थितियों को समझने के बाद इंविरोवनक्स ट्रस्ट ने सेनेटरी नैपकिन बनाने की एक यूनिट दिल्ली में लगायी। जिसके तहत 5 से 7 महिलाओं को सितम्बर 2017 हैंडमेड सेनेटरी नैपकिन कैसे बनते हैं इसकी ट्रेनिंग दी गयी , ये महिलायें यूनिट के पास ही रहती थी और पहली बार काम करने के घर से निकली थीं । आज ये महिलायें खुद हीं नैपकिन बनाती हैं और खुद ही पास में रहने वाली महिलाओं के घर घर जाकर पहुँचाती हैं । इन्होने खुद से सेनेटरी नैपकिन के दो से ढाई हजार यूजर (उपयोग करने वाले) बना लिए हैं। आज ये सारी महिलायें आत्मनिर्भर हैं और अगर आप उनसे पूछो कि -उन्हें कैसा महसूस होता है, तब वो बड़े गर्व से कहती हैं कि वे आत्मनिर्भर, सजग और स्वस्थ हैं । संस्था ने मध्य प्रदेश में खजुराहो, पन्ना, सतना और रीवा के पांच समूह और उत्तर प्रदेश, बरेली के दो समूह को प्रशिक्षण प्रदान किया है और वहाँ महिलायें सेनेटरी नैपकिन बना रही है । वे स्वयं इसका उपयोग करने के साथ-साथ अपने आस-पास के औरतों तक पहुँचा रहीं हैं । आज हम महिलायें बस एक ही सोच के साथ आगे बढ रहे है और अपनी बहनों से कह रहे है –
“शर्म और चुप्पी होगी ख़त्म
जब हम बहनें होंगी संग।“
लेखन:भारती
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