मेरा प्रेम – A poem by Dr Ramesh Pant

मेरा – प्रेम मेरा यह अनन्त प्रेम, सिंह के समान पराक्रमी, हाथी के समान स्वाभिमानी  ।।1।।  वृषभ के समान भद्र, मृग के समान सरल, पशु के समान निरीह, वायु के समान नि:सर्ग ।।2।। सूर्य के समान तेजस्वी, सागर के समान गंभीर, मेरु के समान निश्चल, चंद्रमा के समान शीतल ।।3।।...